मज़दूर है तो संसार है, मज़दूर है तो हम हैं...
राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) से वीरेंद्र गंधर्व मजदूर दिवस पर संदेश दे रहे हैं : मज़दूर है तो संसार है | मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, ये कारखाने, ये बड़े बड़े भवन, ये सभी तो मज़दूरों की तो देन है | मज़दूरों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि मज़दूर है तो हम हैं | मज़दूरों को हम याद करें उनके काम को सलाम करें | सदा याद रखें : साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना, यह गीत जो साहित्य लुधियानवी लिखकर गए हैं वो मज़दूरों पर पूरी तरह लागू होता है | तो हम सब को मिलकर मज़दूरों का साथ देना है | मज़दूर है तो हम हैं...
Posted on: May 03, 2020. Tags: VIRENDRA GANDHARAV
फल सब्जी दुकानदारों से एक अर्जी है हमारी...कोरोना गीत-
ग्राम-करेला टोला, जिला-मंडला (मध्यप्रदेश) से टिकईदास धार एक गीत सुना रहे हैं:
फल सब्जी दुकानदारों से एक अर्जी है हमारी-
दुकान स्थाई हो या लगाने वाला केरी-
ग्राहक को फल सब्जी छूने न देना-
कोरोना के चलते डर लगता है कहना-
ग्राहक जो चाहे खुद ही उन्हें देना-
रुपिया लेना तो सेनेटाईज लगा के लेना-
पता नही कौन सही कौन से बीमारी-
फल सब्जी दुकानदारों से एक अर्जी है हमारी...
Posted on: Apr 23, 2020. Tags: MANDLA MP SONG TIKAIDAS DHAR VICTIMS REGISTER
छोटी उमर थी लम्बी डगर थी...रचना-
राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) से विरेन्द्र गंधर्व एक रचना सुना रहे हैं:
छोटी उमर थी लम्बी डगर थी-
उसकी मंजिल तय हो न पायी-
एक मासूम बच्ची, निकली थी राह में-
अपने गाँव पहुंचने की चाह में-
अपने गंतव्य तक वह पहुंच न पायी-
रास्ते में सांसो को डोरी टूट गयी-
जिंदगी उसके हांथो से छूट गयी...
Posted on: Apr 22, 2020. Tags: CG POEM RAJNANDGAON SONG VICTIMS REGISTER VIRENDRA GANDHARV
अच्छा खा और अच्छा सोंच, त्याग दे शर्म संकोच...कोरोना पर कविता-
जिला-राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) से विरेन्द्र गंधर्व एक कविता सुना रहे हैं:
अच्छा खा और अच्छा सोंच-
त्याग दे शर्म संकोच-
कल तक चेहरा खुल्ला था-
आज पहना ले वस्त्र-
कोरोना से युद्ध करने का-
यही तो है एक शस्त्र-
एक दूजे से दूर रहो मार न दे कहीं चोंच-
अच्छा खा और अच्छा सोंच-
त्याग दे शर्म संकोच...
Posted on: Apr 20, 2020. Tags: CG CORONA POEM RAJNANDGAON SONG VICTIMS REGISTER VIRENDRA GANDHARV
अब भरोसा न कर तू खुद का...गीत-
कमल विहार, जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़) से टिकई दास धार एक गीत सुना रहे हैं:
अब भरोसा न कर तू खुद का-
कब निकल जाये सुआ पिंजड़े का-
खून और मांस से ये तन तो बनी है-
आधार के लिये तन में हड्डियाँ लगी हैं-
घमंड न कर कोमल तन का कब निकल जाये-
मानव प्राणी सबसे कीमती है जग में-
सजाता है तन को अनेको रंग में...