फर्जी मुठभेड़...कविता
भागीरथी वर्मा, जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़) से एक कविता सुना रहे हैं: जिसका बोल है फर्जी मुठभेड़; आदिवासी इलाको में पूंजीपतियों द्वारा, पिछले चार साल 48 पुलिस कैम्प लगाये| फोज के भर्ती वोड्र के नाम से करते| अपने ही राज्यों के जंगलो में आदिवासो को सुरक्षा देने के बहाने आदिवासो पिस्तो में मारते| सामने फर्जी मुठभेड़ करते सुबह के अखवा नक्सली मुठभेड़ में नक्सली मारा गया कहते मौत का तांडफ का खेल इसलिए खेला जा रहा है| जगंल से ही लोहा कोयला हिरा सोना निकलकर पूंजीपतियों सोपा जा रहा है| आदिवासो को जल जंगल जमीन बचाने अंगरेज से भी लड़ना पड़ा था स्वतंत्र भारत में पूंजीपतियों से आज भी लड़ना पड़ रहा है| दुर्भाग्य इस बात का है| जिस देश में राज्यपाल राष्टपति आदिवासी हैं उस देश के आदिवासियों को आज भी गुलामियों से बतर जिंदगी जीने मजबूर होना पड़ रहा है|
Posted on: Jan 27, 2023. Tags: CG POEM RAIPUR
मन भौवरा रे मन भौवरा तू भूल गया मन भौवरा रे...कविता
ग्राम-तमनार, जिला-रायगढ़ (छत्तीसगढ़) से कन्हैयालाल पडियारी एक कविता
सुना रहे हैं:
मन भौवरा रे मन भौवरा तू भूल गया मन भौवरा रे-
फूलोँ को छोड़ काटो में झूल गया तेरा मंजिल कही-
और था कहा जाके रास्ता भूल गया तुझे कही-
और जाना था कहा आके फस गया क्या-
पाया क्या खोया क्या हिसाब लगाया तेरा-
मेहनत कम ना आये जग में आकर रोया...
Posted on: Dec 04, 2022. Tags: CG POEM RAIGDH
यह लघु सरिता का बहता जल...कविता
ग्राम-मवई, पोस्ट-अलहिया, जिला-बाँदा (उत्तरप्रदेश) से सुरेन्द्र पाल एक
कविता सुना रहे है:
यह लघु सरिता का बहता जल-
कितना शीतल‚ कितना निर्मल-
हिमगिरि के हिम निकल–निकल-
यह विमल दूध–सा हिम का जल-
कर–कर निनाद कलकल छलछल-
बहता आता नीचे पल–पल-
तन का चंचल‚ मन का विह्वल-
यह लघु सरिता का बहता जल...
Posted on: Dec 02, 2022. Tags: BANDHA POEM UP
चरन कमल बंदौ हरि राइ... कविता
सुरेन्द्र पाल, ग्राम मवई, पोस्ट आलिहा, ब्लाक बघेरू, जिला बांधा उत्तरप्रदेश से एक कविता सुना रहे हैं:
चरन कमल बंदौ हरि राइ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै , अंधे कौ सब कुछ दरसाइ।
बहिरौ सुनै , गूँग पुनि बोलै , रंक चलै सिर छत्र धराइ।
सूरदास स्वामी करूनामय , बार – बार बंदौं तिहिं पाइ...
Posted on: Dec 02, 2022. Tags: BAGHERU BANDHA POEM UP
उठो, नई किरण लिए जगा रही नई उषा... कविता
सूरदास पैकरा, जिला जशपुर छत्तीसगढ़ से एक कविता सुना रहे हैं:
उठो, नई किरण लिए जगा रही नई उषा
उठो, उठो नए संदेश दे रही दिशा – दिशा।
खिले कमल अरुण, तरुण प्रभात मुस्करा रहा,
गगन विकास का नवीन, साज है सजा रहा।
उठो, चलो, बढ़ो, समीर शंख है बजा रहा,
भविष्य सामने खड़ा प्रशस्त पथ बना रहा।
उठो, कि सींच स्वेद से, करो धरा को उर्वरा,
कि शस्य श्यामला सदा बनी रहे वसुंधरा।