मैं भारत का नागरिक हूँ...कविता
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार कविता सुना रहे है :
मैं भारत का नागरिक हूँ-
मुझे लड्डू दोनों हाथ चाहिये-
बिजली मैं बचाऊँगा नहीं-
बिल मुझे माफ़ चाहिये-
पेड़ मैं लगाऊँगा नहीं-
मौसम मुझको साफ़ चाहिये-
शिकायत मैं करूँगा नहीं-
कार्रवाई तुरंत चाहिये-
बिना लिए कुछ काम न करूँ-
पर भ्रष्टाचार का अंत चाहिये...
Posted on: Feb 28, 2019. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
लेती नहीं दवाई माँ, जोड़े पाई-पाई माँ...कविता-
मालिघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार एक कविता सुना रहे है :
लेती नहीं दवाई माँ, जोड़े पाई-पाई माँ-
दुःख थे पर्वत, राई माँ, हारी नहीं लड़ाई माँ-
इस दुनियां में सब मैले हैं, किस दुनियां से आई माँ-
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे, गरमा गरम रजाई माँ-
जब भी कोई रिश्ता उधड़े, करती है तुरपाई माँ-
बाबू जी तनख़ा लाये बस, लेकिन बरक़त लाई माँ-
बाबूजी थे सख्त मगर, माखन और मलाई माँ-
बाबूजी के पाँव दबा कर, सब तीरथ हो आई माँ-
नाम सभी हैं गुड़ से मीठे, मां जी, मैया, माई, माँ...
Posted on: Feb 27, 2019. Tags: BIHAR MUZAFFARPUR POEM SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
हे सरणा माय राऊर पूजा करिला...सरणा भजन गीत
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार सरणा भजन गीत सुना रहे हैं :
हे सरणा माय राऊर पूजा करिला-
हे चंदा माय राऊर सेवा करिला-
आपन के विनती स्वीकार करु माँ-
व्यर्थ के मन बेरा पार करु माँ-
रात दिन परेशानी किन के-
तोर दूरा जाईला-
राऊर खातिर सेवा करिले-
इते दिन उपवास रहिला-
तोहरे अँचरे में माँ-
सबके जिंदगी आहे-
तोहर बीना आपन कर्मा-
कुछ भी नहीं जानिला...
Posted on: Feb 27, 2019. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
लीचिया लाले लाल ए सैया मुजफ्फरपुर से लईह...लीची फल गीत
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार लीची फल के ऊपर आधारित एक गीत सुना रहे है :
लीचिया लाले लाल-
ए सैया मुजफ्फरपुर से लईह-
नहीं खईब सईया त बड़ा पछतईब-
स्वीट सीटी के फल रसदार-
लीच्छवि वैशाली,गोंदिया एक्सप्रेस-
जाईला मुजफ्फरपुर-
लाल, पीयर, हरियर बाटे एक्कर बा छिलकिया-
बीच रसदार बाटे अमृत बाटे गुदिया-
बीज बाटे एक्कर छोट -छोट-
ए सईया मुजफ्फरपुर से लईह...
Posted on: Feb 26, 2019. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
दरोगा जी हो चार दिन से पियावा फल पाता...लोकगीत -
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार एक लोकगीत सुना रहे है:
सोची-सोची जिया हमरो काहे घबराता-
दरोगा जी हो चार दिन से पियावा फल पाता-
शहर में खोजनी बा जरिया बजरिया-
कतई बलम भी न आवेले नजरिया-
कतनो लगावा तानी लगात नहीं के पता-
दरोगा जी हो चार दिन से पियावा फल पाता...