हे येलो झेलो कनकी नूका झाजी रो हे येलो झेलो...गोटुल गोंडी नृत्य गीत
ग्राम-मेकावाही, पंचायत-शंकरनगर, जिला-उत्तर बस्तर कांकेर (छत्तीसगढ़) से मोहन यादव के साथ आदिवासी युवक युवतियां गोटुल में नृत्य करती हुए एक गोंडी गीत सुना रहे है:
रे रेलों येलो झेलो कनकी नूका-
झाजी रो हे येलो झेलो-
जावा लहकी किम रोय हे येलो झेलो-
निमा बेके दाकिरा ये दादा झेला-
हिप्या पिटे जोड़ी रो ये येलो झेलो-
जोड़ी पड़की दाका रो हे येलो झेलो-
नना वेने वायका ये दादा झेला...
Posted on: Sep 07, 2018. Tags: CG GONDI GOTUL KANKER MOHAN YADAV SONG
गोंडी संस्कृति के अनुसार जब युवती को मासिकधर्म हो रहा है वह उस समय गोटुल में नहीं जा सकती...
ग्राम-मेकावाही, पंचायत-शंकरनगर, ब्लॉक-कोयलीबेडा, जिला-उत्तर बस्तर कांकेर (छत्तीसगढ़) से बस्तुराम भोगा, जुन्गुराम आचला, सीताबाई, हिन्दूबाई, सेवंता और छन्नोबाई गोंडी भाषा में गोटुल संस्कृति के बारे में जानकारी बता रहे हैं |गोटुल में क्या-क्या होता है: गोटुल में गाँव में कोई भी समस्या हो कोई गलती करता है इन सब का गोटुल में ही फैसला किया जाता है और गोटुल में शाम को सिर्फ़ वे लोग ही जा सकते है जिनका शादी नहीं हुआ है जैसे बच्चे से लेकर युवक-युवतियां ही नाच गाना कर सकते है |जो युवती मासिकधर्म से रहती हैं, उसका गोटुल में प्रवेश वर्जित है जितने दिन तक उसका पीरियड होता है उतने दिन तक गोटुल में नहीं जा सकती | पीरियड होने के बाद ही गोटुल में जा सकती है|
Posted on: Sep 06, 2018. Tags: BASTURAM BHOGA CG CULTURE GONDI GOTUL KANKER KOYLIBEDA
वायकी-वायकी सिलेदार अवर गोटुल ते...गोंडी गोटुल गीत...
ग्राम-ताडवाहली, विकासखण्ड-कोयलीबेडा, जिला-उत्तर बस्तर कांकेर (छत्तीसगढ़) से स्कूल के बच्चे रीना, काजल और मनीषा गोटुल में गाया जाने वाला गोंडी भाषा में गीत सुना रहे है:
रे रे लोयो रे रे राला रेला रे रे ला लोयो रे रे ला राला रे रे रेला रे रे ला-
वायकी-वायकी सिलेदार अवर गोटुल ते-
निवा नावा पोलोय आयार नाड़ गोटुल ते-
वायकी-वायकी बेलोशा अवर गोटुल ते-
निवा नावा पोलोय आयार नाड़ गोटुल ते-
गुपाल मरस पेयाना वलीदायना-
इद मावा जिन्दगी रनडे दीया-
डोडाक-डोडाक दायना ऐटेग बोटेग पेयाना...
Posted on: Sep 02, 2018. Tags: CG GONDI GOTUL KANKER KOELIBEDA SAPNA WADDE SONG
गोटुल में मिलकर हम समस्या निपटाते थे, पारम्परिक नेताओं की मदद से उसको पुनर्जीवित करना है...
ग्राम पचायत-पाड़ेंगा, ब्लॉक-कोयलीबेडा, जिला-उत्तर बस्तर कांकेर (छत्तीसगढ़) से मोहन यादव के साथ रैनुराम सलाम गोटुल के बारे में बता रहे है: पहले गोटुल की प्रथा थी पूरे गावं के लोगों के लिए एक मंच था गावं में जो भी समस्या होती थी वहां गाँव के सभी लोग उस गोटुल में बैठ कर समस्या का समधान करते थे | लेकिन आज पहले जैसे गोटुल नहीं रहे, गोटुल का पहले जैसा संस्कृति रीति रिवाज की जो प्रथा थी वो धीरे-धीरे लुप्त होते जा रही है आज हमे लगता है हम पढ़े लिखे हो गये हैं. जरूरत है कि हम अपनी मूल संस्कृति को गोटुल में बैठ कर चर्चा करे, जिससे हमारी भाषा संस्कृति की सुरक्षा बनी रहे | इसलिए अभी गाँव के पारम्परिक नेता जैसे पटेल, गुनिया, मांझी ये सभी मिल कर अभी गोटुल प्रथा को बचाने का प्रयास कर रहे हैं...