देश की माटी, देश का जल...कविता
सुनील कुमार ,मालीघाट, जिला मुजफ्फरपुर (बिहार ) से रवीन्द्रनाथ ठाकुर की एक कविता सुना रहे हैं जिसका अनुवाद भवानीप्रसाद मिश्र ने किया था :
देश की माटी ,देश का जल-
देश की माटी देश का जल-
हवा देश की देश के फल-
सरस बनें प्रभु सरस बने-
देश के घर और देश के घाट-
देश के वन और देश के बाट-
सरल बनें प्रभु सरल प्रभु-
देश के तन और देश के मन-
देश के घर के भाई -बहन-
विमल बनें प्रभु विमल बनें...
Posted on: Apr 26, 2017. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
गले में और कितने लटकाएँ कंकाल, हम हैं तमिलनाडु के किसान...कविता-
मालीघाट ,मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार सरला माहेश्वरी की कविता सुना रहे है:
हम हैं तमिलनाडु के किसान-
गले में और कितने-
लटकाएँ कंकाल-
और कितने दिन-
अधनंगे, नंगे-
धरती को बना थाली-
पेट को रखें ख़ाली-
कितने दिन मुँह में दबाएँ-
चूहे और घास-
बन जाए लाश-
अपने ही पेशाब से बुझाएँ प्यास-
तब तुम मानोगे-
हम हैवान-
काले भूत नहीं-
पहनें हैं खेतों में जली-
अपनी ही खाल-
बदहाल-
जीवित इंसान-
तमिलनाडु के किसान-
अभी कहाँ निकला कोई हल-
अभी कहाँ खाया-
हमने अपना मल-
कितनी हदें हैं-
तुम्हारी बेशर्मी की-
अभी देखना बाकी है वे पल...
Posted on: Apr 25, 2017. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
मेरी पत्नी...कहानी -
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार एक कहानी सुना रहे हैं:
बहुत समय पूर्व की बात है एक युवक बहुत गुस्से में एक दिन बगीचे बैठा था वहीँ पर एक बुजुर्ग बैठे थे उन्होंने उनकी समस्या के विषय में पूछा तो युवक अपनी पत्नी की कमियों के बारे में बताने लगा तब बुजुर्ग ने उसके घर के कामो के बारे में जैसे सफाई करना, खाना बनाना, सभी का ध्यान रखना और सुख दुःख में कौन काम आता है पूछा जिस पर युवक ने जवाब दिया मेरी पत्नी ही यह सब काम करती है तब बुजुर्ग ने कहा उसकी इतनी सारी अच्छाई तुम्हे नही दिखी और एक कमी बड़ी आसानी से दिख गई तब युवक को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने बाद में अपनी पत्नी से माफी माँगी और उसके बाद वे सुखपूर्वक रहने लगे-सुनील@9308571702
Posted on: Apr 25, 2017. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
खेत सभय भगवान लगत है, पिसी चना वरदान लगत है...कविता -
सुनील कुमार महेश कटारे सुगम की एक कविता सुना रहे है :
खेत सभय भगवान लगत है, पिसी चना वरदान लगत है-
अब आफत में प्राण लगत है, दीड गए सब और अब शान लगत है-
और जबसे परव तुषार ककाजू, सौवत सौवत चिल्लयांन लगत है-
फसलन को हो गोड दडोरा, ज़िन्दा लाश किसान लगत है-
भय्या कोऊ से बोलत नय्या, कछु कहो खिच्यान लगत है-
क़र्ज़ उगाए जब कोऊ आवे दद्दा बस, विज्ञान लगत है-
खेत सभय भगवान लगत है, पिसी चना वरदान लगत है...
Posted on: Apr 24, 2017. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
आता है याद मुझको, गुजरा हुआ जमाना...ग़ज़ल-
सुनील कुमार उर्दू व फारसी के लोकप्रिय शायर, सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा के रचियता इकबाल साहब की ग़ज़ल सुना रहे है:
आता है याद मुझको, गुजरा हुआ जमाना-
वो बाग की बहारे, वो सबका चहचहान-
आज़ादीया कहा वो, अब अपने घोंसले की-
अपनी खुशी से आना, अपनी खुशी से जाना-
आता है याद मुझको, गुजरा हुआ जमाना-
लगती है चोट दिल पर, आता है याद जिस दम-
सब नम के आसूओं पर, कलियों का मुस्कुराना-
आता है याद मुझको, गुजरा हुआ जमाना...