गले में और कितने लटकाएँ कंकाल, हम हैं तमिलनाडु के किसान...कविता-
मालीघाट ,मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार सरला माहेश्वरी की कविता सुना रहे है:
हम हैं तमिलनाडु के किसान-
गले में और कितने-
लटकाएँ कंकाल-
और कितने दिन-
अधनंगे, नंगे-
धरती को बना थाली-
पेट को रखें ख़ाली-
कितने दिन मुँह में दबाएँ-
चूहे और घास-
बन जाए लाश-
अपने ही पेशाब से बुझाएँ प्यास-
तब तुम मानोगे-
हम हैवान-
काले भूत नहीं-
पहनें हैं खेतों में जली-
अपनी ही खाल-
बदहाल-
जीवित इंसान-
तमिलनाडु के किसान-
अभी कहाँ निकला कोई हल-
अभी कहाँ खाया-
हमने अपना मल-
कितनी हदें हैं-
तुम्हारी बेशर्मी की-
अभी देखना बाकी है वे पल...