चल तो गुहिया रे आमा बगीचा...गीत
ग्राम-गुडेफल, पंचायत-दमकासा, ब्लाक-दुर्गकोंदल, जिला-कांकेर (छत्तीसगढ़) से सुनील कुमार और शिवराज एक गीत सुना रहे है:
चल तो गुहिया रे आमा बगीचा-
जुलू हम जुलुम रे पका को खिलाबो-
कच्चा को फेकाबो चल संगिया चल रे-
चल तो गुहिया रे आमा बगीचा...
Posted on: Jan 24, 2018. Tags: SONG SUNIL KUMAR SHIVRAJ VICTIMS REGISTER
रात को पेट भर ले और सुबह काम पर लौट आए, सिर्फ वेतन इतना ही देना है...
रात को पेट भर लें और सुबह को काम पर लौंट आयें
सिर्फ वेतन इतना ही देना है
कभी वह सामने न बोले
पीछे से जुबान न खोले
हर काम में कमियां गिनना है
सबल होकर खड़ा न हो जाए कभी वो बगावत कि लाठी लेकर सामने
इसलिए बदनटूट काम करवाना है
उपर से अपना भी कहना है और शोषण भी करना है
प्रत्यक्ष में धर्मात्मा बनना है और अप्रत्य में लहू पीना है
आज ठेकेदारों मिल मालिकों और उद्योगपतियों की यही तो योजना है
कि यदि सदा लाभ का स्वाद चखना है
तो गरीब मजदूर को गरीब ही रखना है
शिवराज घायल
Posted on: Apr 10, 2011. Tags: Shivraj
देखादेखी में देखो हम कितने बदल गए हैं...
देखादेखी में देखो हम कितने बदल गए हैं
कि अपनी मूल पहचान से ही दूर तलक निकल गए हैं
खुद को ज्ञान का सूरज कहने वाले
हम क्यूं ढलने के लिए पश्चिम की ओर चल रहे हैं
सिर्फ बातें ही रह गई हैं हमारे सिकन्दर सी
वर्ना आदतें तो बन गई हैं बन्दर की
विदेशी रंगों में रंगा है हमारा खानपान रहन सहन पहनावा
गैरो की सभ्यता का चोला पहनकर हम हिन्दुस्तानी होने का करते हैं दावा
जुबां पर भाषा है गैरों की
क्या यही हकीकत है हम भारत के शेरों की
हमारी योग्यताएं परायों से वफा निभाने चली हैं
क्यूं कमान न सम्हाल सके हम घर की
खुद को हम सम्पूर्ण कहने वाले क्यों अधजल गगरी की तरह छलक रहे हैं
Posted on: Nov 30, 2010. Tags: Shivraj
आज के नेता
देखो देखो आज के नेताओं का अत्याचार
भीख मांग कर वोटों की हथिया ली सरकार
बस बन गई सरकार तो नहीं कोई जनता की कोई सार समार
चिपके बैठे हैं गद्दी से, नहीं छोडते अपना घर द्वार
गरीब दाने दाने को मोहताज, गोदामों में व्यर्थ सडे अनाज
करते नहीं विचार क्योंकि अगर देश से मिट गई गरीबी
तो कैसे चलेगा इनके गबन कमीशन का व्यापार
याद दिलाए जब कोई इनको इनके वचन या करे बहिष्कार
तो ये उन पर ही छुडवाते आंसू गैस करते लाठीवार
प्रताडित जनता हो मजबूर लाचार जब करे पलटवार
तो ये उन हक मांगने वाले को कहते नक्सलवाद
जब हक मांगने वाला ही इनकी नज़र में नक्सलवाद
तो क्या हम जनता अपने हक के लिए करे नहीं आगाज़
राजनीति बना दी आज के नेताओं ने कत्लगाह
रख दी हम जनता की गर्दन पर महंगाई की तलवार
Posted on: Nov 15, 2010. Tags: Shivraj
बेटी की आराधना
अपना बचपन ही तो खेलने आती हैं आपके आंगन में हम बेटियां
लोरियों और थपकियों से ही तो बहलने आती हैं आपके आंचल तले हम बेटियां
हे मां, हे पिता सुनो
सिर्फ बचपन का ही तो मांगा है आजतक हमने आपसे आसरा
फिर भी हमसे क्यों है किनारा
हमारे लिए ही सोचने में क्यों देर है
क्यों हम सदियों से अपनों में ही गैर हैं
कबूल करो हमारी आराधना
हम भी जीव हैं
हमें भी दुनिया में लाने का कर दो एहसान
एक मेहमान बनकर ही तो आती है आपके घर में हम बेटियां
अपना बचपन ही तो खेलने आपके आंगन में आती हैं हम बेटियां
अपनेपन की ही तो प्यासी है हमारे मन की क्यारी
क्यों पैदा होने से पहले ही ठुकरायी जाती है ज़िंदगी हमारी
नारी से पैदा होकर नर को क्यों बोझ लगती है नारी
और क्यों तोडना चाहते हो हम कलियों को समझकर कांटों की डाली
सुनो चहकने भर ही तो आती हैं आपकी बगिया में हम बेटियां
हम भी अपने दम पर चलना सीख सकें
चांद तारों पर अपना नाम लिख सकें
आप लोगों का नाम रोशन कर बेटियों के प्रति दुनिया की सोच बदल सकें
सिर्फ एक मौका ही तो ढूंढ रही हैं
अनेको बार पैदा होने से पहले ही कोख में मर मर कर इस दुनिया में आने का
बाबुल प्यारे, आपकी उंगली के सहारे
बचपन ही तो संवरने आती हैं हम बेटियां
अपना बचपन ही तो खेलने आती हैं आपके आंगन में हम बेटियां
लोरियों और थपकियों से ही तो बहलने आती हैं आपके आंचल तले
आपके आंचल तले हम बेटियां
शिवराज घायल