बकरी चराने वाले समारू और मंगलू उरांव की छत्तीसगढ़ी कहानी...
ग्राम-तमनार, जिला-रायगढ़ (छत्तीसगढ़) से कन्हैयालाल पडियारी एक कहानी सुना रहे हैं: चिर्रू नाम का एक उरांव रहता था, उसके दो बेटे थे जिसका नाम समारू और मंगलू जिसमे सम्हारु बहुत होशियार था, मंगलू होशियार नही था, चिर्रू खतम हो गया और उसके पत्नी वृद्ध हो गई घर के सभी जिम्मेदारी दोनों भाई के ऊपर आ गया| वे दोनों गाँव के बकरी चाराने लगे एक दिन समारू, मगलू से कहा जा रे बकरियों को चारा-चराकर ले आओ, वह थोड़ा चना रखा और चला गया मंझनिया के समय बकरियों को पानी पिला के और महुआ के छाया में सो गया, बकरी बैठ के चारा को पागुर ले रहे थे मंगलू अपने मन में विचार किया, ये बकरी मुझे लड़ने को कह रहे हैं, ये सोचकर जंगली पासा में सभी बकरियों के मार दिया सभी बकरी मर गये, और वे घर वापस अ गया समारू, मंगलू से पूछा बकरियाँ कहाँ हैं, बताया वो मुझे लड़ने के लिए चगली कर रहे थे तो मै उन्हें पासा से मार दिया, फिर मंगलू सोचा कि बकरी हमें नही छोड़ते और वह जाके सभी बकरी को भुदरा में ले जाके छुपा दिया और बकरियों के मालिकों को कह दिया सभी बकरियों को (बिग्वा) चीता खा गया, सभी लोग अपने-अपने बकरियों को खोजने गये, लेकिन एक भी नही पाए सभी मालिक चुपचाप रह गये, अर्थात ये कि व्यक्ति को हमेशा होशियार रहना चाहिए: