बहुत याद करते हैं शहीदो को हम...
बहुत याद करते हैं शहीदो को हम
बीरो ने साहस का उठाया कदम
खातिर वतन के सर हैं कटाये,
सदा देश भक्ति के गीत गुनगुनाये
वीरोँ ने खाई थी माँ कि कसम
शहीदो कि यादोँ को नहीं हम हैं भूले,
गोलियो को झेला फांसी पे झूले
साहस वीरो कि हुई थी न कम
Posted on: Feb 04, 2014. Tags: Bunty Jhansi
कलियुग बैठा मार कुडंली में जाऊं तो कहाँ जाऊं...
ग्राम- दुर्गापुर, जिला- झांसी से बंटी प्रसाद जी एक भजन गा रहे हैं-
कलियुग बैठा मार कुडंली में जाऊं तो कहाँ जाऊं
अब हर घर में रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊं ।
दशरथ कौशिल्या जैसे मात -पिता अब भी मिल जाएं
पर राम सा पुत्र मिले ना जो आज्ञा ले बन जाए
भरत, लखन से भाई को मैं ढूढ़ कहाँ से अब लाऊं ।
जिसे समझते हो अपना तुम, जड़ें खोदता आज वही
रामयण कि बातें जैसे लगती हैं सपना कोई ।
तब थी दासी एक मंथरा आज वही घर-घर पाऊँ
Posted on: Jan 14, 2014. Tags: Bunty Jhansi
इतनी शक्ति हमें दे न दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना...
इतनी शक्ति हमें दे न दाता
मन का विश्वास कमज़ोर हो ना
हम चलें नेक रास्ते पे हमसे
भूलकर भी कोई भूल हो ना...
हर तरफ़ ज़ुल्म है बेबसी है
सहमा-सहमा-सा हर आदमी है
पाप का बोझ बढ़ता ही जाये
जाने कैसे ये धरती थमी है
बोझ ममता का तू ये उठा ले
तेरी रचना का ये अन्त हो ना...
हम चले...
दूर अज्ञान के हो अन्धेरे
तू हमें ज्ञान की रौशनी दे
हर बुराई से बचके रहें हम
जितनी भी दे, भली ज़िन्दगी दे
बैर हो ना किसी का किसी से
भावना मन में बदले की हो ना...
हम चले...
हम न सोचें हमें क्या मिला है
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण
फूल खुशियों के बाटें सभी को
सबका जीवन ही बन जाये मधुबन
अपनी करुणा को जब तू बहा दे
करदे पावन हर इक मन का कोना...
हम चले...
हम अन्धेरे में हैं रौशनी दे,
खो ना दे खुद को ही दुश्मनी से,
हम सज़ा पाये अपने किये की,
मौत भी हो तो सह ले खुशी से,
कल जो गुज़रा है फिरसे ना गुज़रे,
आने वाला वो कल ऐसा हो ना...
हम चले नेक रास्ते पे हमसे,
भुलकर भी कोई भूल हो ना...
इतनी शक्ति हमें दे ना दाता,
मनका विश्वास कमज़ोर हो ना..
Posted on: Oct 25, 2013. Tags: Bunty Jhansi
आ गए यहां जवां कदम जिन्दगी को ढूंढते हुए...
आ गए यहां जवां कदम जिन्दगी को ढूंढते हुए
गीत गा रहे हैं आज हम रागिनी को ढूंढते हुए.
अब दिलों में ये उमंग है, ये जहां नया बसायेंगे
जिन्दगी का दौर आज से दोस्तों को हम सिखायेंगे
फूल हम नए खिलायेंगे ताजगी को ढूंढते हुए
कोढ की तरह दहेज है आज देश के समाज में
है तबाह आज आदमी लूट पर टिके समाज में
हम समाज भी बनायेंगे आदमी को ढूंढते हुए
फिर न रो सके कोई दुल्हन जोर जुल्म का न हो निशां
मुस्करा उठे धरा गगन हम रचेंगे ऐसी दास्तां
यूं सजाएंगे वतन को हम हर खुशी को ढूंढते हुए
गीत गा रहे हैं आज हम जिंदगी को ढूंढते हुए.
Posted on: Sep 26, 2013. Tags: Bunty Jhansi
है तबाह आज आदमी, लूट पर टिके समाज में...
गीत गा रहे हैं आज हम रागिनी को ढूंढते हुए
आ गए यहाँ जवां कदम, मंजिलों को ढूंढते हुए
इन दिलों में उमंग है,जहाँ नया बसायेंगे
फूल हम नया खिलाएंगे ताजगी को ढूंढते हुए
बुरा दहेज़ का रिवाज है आज देश और समाज में
है तबाह आज आदमी, लूट पर टिके समाज में