है तबाह आज आदमी, लूट पर टिके समाज में...
गीत गा रहे हैं आज हम रागिनी को ढूंढते हुए
आ गए यहाँ जवां कदम, मंजिलों को ढूंढते हुए
इन दिलों में उमंग है,जहाँ नया बसायेंगे
फूल हम नया खिलाएंगे ताजगी को ढूंढते हुए
बुरा दहेज़ का रिवाज है आज देश और समाज में
है तबाह आज आदमी, लूट पर टिके समाज में