बाप कह्य्या बेटा, पढ्या, केना जन्य्या ऊ की कर्र्य्या...भोजपुरी कविता
ग्राम-बिसनपुर बकरी, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार एक भोजपुरी कविता सुना रहे है :
बाप कह्य्या बेटा, पढ्या, केना जन्य्या ऊ की कर्र्य्या-
आठ बजे सूत के उठ्य्या, बिना मुह धोइले चाय पियय्या-
खैनी खाएला लूस फूस, कर्र्य्या-
बिना नहेला, किना जव्य्या-
कहेला की आत्मा में, पढ्या-
लेकिन सात के पहाडा में, आठ बार भुलय्या...
Posted on: Feb 14, 2019. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
उनको मालूम न कर, सताने की हद...रचना
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार सुजीत कुमार की रचना सुना रहे है :
उनको मालूम न कर सताने की हद-
आप भी रखिए अपनी दीवानगी की हद-
इससे पहले की कोई रुसवाई हो-
जानिए इश्क को जनाते की हद-
अश्क बह जाना भी कभी, जरुरी है-
उनको मालूम न कर, सताने की हद...
Posted on: Feb 14, 2019. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
भूख को रोटी दाल पै आना पड़ता है, जानबूझकर जाल पै आना पड़ता है...गज़ल
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर, (बिहार) से सुनील कुमार महेश कटारे सुगम की गज़ल सुना रहे है:-
भूख को रोटी दाल पै आना पड़ता है-
जानबूझकर जाल पै आना पड़ता है-
आसमान में चाहे जितना भी उड़ ले-
पंछी को फिर डाल पै आना पड़ता है-
ऐश करेगा कब तक कोई रहमत पर-
लौट के अपने हाल पै आना पड़ता है-
सच्चाई इक हद तक ढाँपी जाती है-
इक दिन तो पड़ताल पै आना पड़ता है-
अनदेखा कब तलक करोगे रिश्तों का-
जल्दी इस्तकबाल पै आना पड़ता है...
Posted on: Feb 13, 2019. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
कहमा के पीअर माटी, कहाँ के कोदार हे...बज्जिका भाषा में विवाह मटकोर गीत -
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार बज्जिका भाषा में एक मटकोर गीत सुना रहे हैं, विवाह के समय बिहारी हिन्दू परिवारों में महिलाएं एक रस्म में मिट्टी खोदने खेत में जाती हैं तब यह सभी महिलाएं मिलकर यह सामूहिक गीत गाती हैं :
कहमा के पीअर माटी, कहाँ के कोदार हे-
कहमा के पांच सोहागिन,माटी कोरे जाए हे-
अजोधा के पीअर माटी ,जनकपुर के कोदार हे-
बजि्जकांचल के पांच सोहागिन माटी कोरे जाए हे...
Posted on: Feb 13, 2019. Tags: SONG SUNIL KUMAR VICTIMS REGISTER
कर रहे इस बात का अफ़सोस हम...रचना
ग्राम-मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार महेश कटारे ‘सुगम’ की रचना सूना रहे हैं :
कर रहे इस बात का अफ़सोस हम-
वक्त पर हरदम खामोश हम-
बढ़ते रहना चाहिए था जो हमें-
बढ़ न पाए नस्ल में वो जोश हम-
साजिशे सब सामने होती रही-
बेखबर फिरभी रहे मदहोश हम-
बेईमानों के बढाए हौसले-
उनका ही करते रहे जयघोष हम-
बेच खाया हमने अपना स्वाभिमान-
मरते ही आये हैं आक्रोश हम-
कोशिशे तो की मगर उलझी हुयी-
ले नहीं पाए नतीजा उससे हम-
कर रहे इस बात का अफ़सोस हम...