भूख को रोटी दाल पै आना पड़ता है, जानबूझकर जाल पै आना पड़ता है...गज़ल
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर, (बिहार) से सुनील कुमार महेश कटारे सुगम की गज़ल सुना रहे है:-
भूख को रोटी दाल पै आना पड़ता है-
जानबूझकर जाल पै आना पड़ता है-
आसमान में चाहे जितना भी उड़ ले-
पंछी को फिर डाल पै आना पड़ता है-
ऐश करेगा कब तक कोई रहमत पर-
लौट के अपने हाल पै आना पड़ता है-
सच्चाई इक हद तक ढाँपी जाती है-
इक दिन तो पड़ताल पै आना पड़ता है-
अनदेखा कब तलक करोगे रिश्तों का-
जल्दी इस्तकबाल पै आना पड़ता है...