तब भी सावन आता था, अब भी सावन आता है...कविता-
राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) से विरेन्द्र गंधर्व सावन पर एक कविता सुना रहे हैं:
तब भी सावन आता था-
अब भी सावन आता है-
पहले जैसा सावन नहीं है-
सावन पहले होता था मनभावन-
अब सावन मनभावन नहीं है-
कहीं तो इतना बरसा कि नदियों में बाढ़ आ गयी-
कही तो मानव बूंद बूंद को इतना तरसा कि समस्या तराह आ गयी... (AR)