कंबल ओढ़े जाडा सिकुड़े, फिर भी निगोड़ा आग मांगे...कविता
ग्राम-तमनार, जिला-रायगढ़ (छत्तीसगढ़) से कन्हैयालाल पडियारी एक कविता सुना रहे हैं :
कंबल ओढ़े जाडा सिकुड़े-
फिर भी निगोड़ा आग मागा – रूई की रजाई ओढ़-
तन का ताप मागा-
अल्लढता के लिहाफ ओढ़े-
तन-मन झाझोड़ डारे-
कम्बल कपडा साल गर्म-
सूरज का अघोष मागे...