सफर : हिना फिरदौस की कविता
सफर
कामिनी हर मोड पर खडी थी बेसहारा
ना था कोई अपना, हर कोई था पराया
दुनिया के बोझ से झुक चला था कंधा
ऊफ न किया, डटकर खडी रही, लडती रही
खोजती रही राहों में, इस चाह में कोई निकले ऐसी राह
जहां अपना पंख फैलाकर नील गगन में बल्खाती लहराती उड सके
चांद सितारों को छू सके
हज़ारों लाखों साल की कोशिश
परदे से बाहर आने का संघर्ष
अपने आप को पहचान देने की
पर उसके हर कदम पर लाखों उंगलियां उठतीं
उडान भरने पर सवाल उठते
हर सवालों का जवाब देते
हर मुश्किल लम्हों में हार न मानते हुए अबला
अपना लम्बा सफर तय करती रही
और आखिरकार सबला बन गई
हिना फिरदौस