मुझे किसी चिंगारी की सोंधी सी खुशबू आ रही है...

इंकलाब ऐसे ही नहीं हो जाते हैं
इंकलाब भीख में नहीं मिल जाते हैं
अन्याय की चरम सीमा होती है
इंसाफ का गला घोंटा जाता है
आवाज़ पर ताले लगाए जाते हैं
तब बदलाव के अंकुर लहलहाते हैं
कैदखाने में इंसानियत जब चीखती है
और दीवारों के पत्थरों से टकराती है
तब जाकर बदलाव की चिंगारी पैदा होती है
इस चिंगारी की आग न अंग्रेज़ बुझा पाए थे
न ही पूंजीपतियों के दमकल बुझा पाएंगे
ये सारे के सारे भ्रष्टाचार के भीमकाय दानव
ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएंगे
जंगलों की लकडियां किसी की कुर्सी बनने से इंकार कर देगी
ज़मीन के लुटेरे दो गज़ ज़मीन के लिए भी तरसेंगे
मासूम आंखों के आंसू आग बनकर बरसेंगे
अन्याय अपनी चरम सीमा को पार कर रहा है
हर सोए हुए ज्वालामुखी पर वार कर रहा है
मुझे किसी चिंगारी की सोंधी सी खुशबू आ रही है
सुनो कि धरती माता इंकलाब को पुकार रही है

अमीर रिज़वी

Posted on: Feb 10, 2011. Tags: Amir Rizvi

दीवारों से विचारों पर जो अंकुश लग गया होता, तो बापू डर गया होता...

दीवारों से विचारों पर जो अंकुश लग गया होता
तो बापू डर गया होता
यदीबी ज़ुल्म के आगे हुसैनी जीत न होती
कृष्ण जन्म न लेता
विष्णु मर गया होता
फिरंगी सूर्य न ढलता
ये भारत वर्ष न होता
कभी भी सत्य की खातिर कोई संघर्ष न होता

जहां पर डॉक्टरों की एक झलक का नाम है पैसा
जहां पर ज़िन्दगी और मौत का संग्राम है पैसा
वहीं जाकर बिनायक ने दिलों में धडकनें बांटी
जगाया जीने का जज़्बा, जलाई प्रेम की बाती
खिलाए फूल से चेहरे बयांबा जंगलों जाकर
बसाई उजडी बस्ती भी उसी का घर बना बस्तर
गरीबों की खुशी को देखकर जलने लगे अफसर
हुआ चर्चा तो नेता भी वहां लगे आने अक्सर
अंधेरे में जले दीपक तो भूत भाग जाते हैं
बहाने ढूंडकर वरना जले दीपक बुझाते हैं
बिनायक जानता था हर किसी शैतान की साजिश
पुलिस की गुण्डागर्दी और गुण्डाराज़ की साजिश
कभी मज़बूर पर गोली कभी संहार की साजिश
कभी कुर्सी बचाने की वही सरकार की साजिश
हुए मासूम जो घायल तो रोया था बिनायक भी
न जाने कितनी रातों से न सोया था बिनायक भी
अदालत पर भरोसा करके खोले राज़ जो उसने
हिली कुर्सी हुआ हडकम्प फंसे उसमें विधायक भी
लगे निर्दोष पर पोटा और हत्यारा बने सीएम
है अपने देश की यह रीत अब तक इस तरह कायम
उसी ही श्रुंखला में नाम बिनायक का भी आता है
ज़ुल्म ढाए जाते हैं वो फिर भी मुस्कुराता है
चले जब ज़ुल्म की आंधी, न घबराओ, न डर जाओ
चलो मज़लूम की खातिर ज़रा परचम तो लहराओ
सलाखें मोम कर डालो, मसीहा है सलाखों में
सिखा दो प्यार की बोली सितम ढाते इलाकों में

Posted on: Feb 01, 2011. Tags: Amir Rizvi

« View Newer Reports

Recording a report on CGNet Swara

Search Reports »


YouTube Channel




Supported By »


Environics Trust
Gates Foundation
Hivos
International Center for Journalists
IPS Media Foundation
MacArthur Foundation
Sitara
UN Democracy Fund


Android App »


Click to Download


Gondi Manak Shabdkosh App »


Click to Download