हर बस्ती कर दी गयी है पाट-पाट...प्रेमचंद जयन्ती पर कवितापाठ
हैपी कुमार, भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) मुजफ्फरपुर (बिहार) से प्रेमचंद जयन्ती के अवसर पर आयोजित समारोह में आए कवि श्रवण कुमार से प्रेमचंद के साहित्यिक सफ़र के बारे में बात की. साथी श्रवण ने इस अवसर पर एक कविता भी सुनाई:
हर बस्ती कर दी गयी है पाट-पाट
खाटें भी गयी हैं टूट
बिछावन भी हो गए तार-तार
हारे हुए चेहरों पर, लटकी हुई झुर्रियां हैं बेज़ार
जमुनी काकी, धरती माँ की ममता का कुमकुम कचनार
टीबी खांसी से लाचार
देख चूल्हा-चौका सूना
तड़प उठती है बार-बार
कि आखिर कौन ले गया, खून-पसीने भरी कमाई
माँ को भूल न पाया रमुआ
लुट गयी खेती फसल बटाई
किसने छीनी मेहनत उसकी
अपनी कोठी-कार सजाई
सपने राख हुए जल-जल के
जीवन पतझड़ जैसा सूना
रजधानी दुल्हन सी सजती
आज़ादी का यही नमूना