वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ...गीत
सुकमन सिद्धार, तरिया-जिला रायगढ़ से एक गीत सुन रहे हैं:
वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ,मैं था पागल जो उसको बुलाता रहा-
वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ,मैं था पागल जो उसको बुलाता रहा-
वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ-
चार पैसे कमाने मैं आया शहर ,गाँव मेरा मुझे याद आता रहा-
लौटता था मैं जब काट के दोपहर-
अपने हाथों से खाना खिलाती थी माँ...