जंगल मोर के बिना, कि दारू कोर के बिना, और सुनी है बाराते दारू...बुन्देलखंडी लोकगीत
ग्राम-गोण, पोस्ट-थनरा, थाना-दिनारा, जिला-शिवपुरी (छत्तीसगढ़) से अखिलेश कुमार पारश एक बुन्देलखंडी लोकगीत सुना रहे है:
जंगल मोर के बिना, कि दारू कोर के बिना-
और सुनी है बाराते दारू, कोर के बिना-
न्याव्ह कोट बिन, चुनर गोट बिन, दूल्हा कोट बिना-
कि मझली काकी वोट न डाले, 100 के नोट बिना-
बिन चोर के बिना, दारू होर के बिना-
और सुनी है बाराते दारू, कोर के बिना-
जंगल मोर के बिना, कि दारू कोर के बिना...