सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस पर: विधवा-विवाह, फुले दम्पति और डा. यशवंत की सेवा, शहादत...
सुबह-सुबह एक सुन्दर युवती नदी में कूद पड़ी. फुले तट पर टहल रहे थे. नदी की तेज धारा में डूबती-उतराती उस युवती को फुले ने देख लिया बचाने के लिए फ़ौरन नदी में कूदकर उसे किनारे पर ले आये. सर मुड़ाई उस युवती को देखकर फुले समझ चुके थे कि वह विधवा है. पूछने पर पता चला कि वह पास ही के गांव की एक ब्राह्मणी है, उसके पेट में छ: महीने का बच्चा पल रहा है. लोग उसे मार देना चाहते हैं, इसलिए वह अब जीना नहीं चाहती. फुले ने उसे समझाया, ढाढस दिया और जबरन घर ले आए. रोती हुई उस स्त्री को सावित्रीबाई ने गले लगा लिया. फुले दम्पति ने उसी समय निर्णय ले लिया कि वे न केवल विधवा आश्रम खोलेंगे, बल्कि गर्भवती विधवाओं के प्रसव भी कराएँगे. जिस पर पूरे महाराष्ट्र में उनका विरोध हुआ, मगर कम्पनी सरकार की मदद से फुले का बाल बांका नहीं हुआ. उसी युवती की देख-रेख में फुले ने देश का पहला विधवा आश्रम खोला, जिसमें आस-पास की पीड़ित बाल-विधवाएं रहने लगीं. फिर पूणे सहित पूरे महाराष्ट्र में अनेक विधवा आश्रम खुले. अन्यों सहित ब्राह्मणों का भी साथ मिलने लगा.
कुछ दिनों बाद उस विधवा युवती से एक प्यारा-सा बच्चा पैदा हुआ. जिसे फुले दम्पती ने बड़े प्यार से पाला-पोसा. उसे पढ़ा-लिखाकर डाक्टर बनाया. संयोग से फुले दम्पती को कोई संतान नहीं हुई. इसलिए फुले ने उसी लड़के को अपना धर्म-पुत्र माना. यही बालक प्रसिद्ध चिकित्सक डा. यशवंत बना, जिसे फुले दम्पती ने अपनी पूरी सम्पति दे दी, सावित्रीबाई फुले के बाद फुले ट्रस्ट के मालिक डा. यशवंत ही हुए. फुले के भतीजों की एक न चली. ब्रिटिश सरकार में डा. यशवंत की बड़ी इज्जत थी. यशवंत प्लेग रोगियों की सेवा करते-करते चल बसे |