हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए...कविता एवं गीत -
दुष्यंत कुमार और भोजपुरी के राष्ट्रीय गीत के रचयिता बाबु रघुवीर नारायण जी की पुण्य तिथि के अवसर में एक कविता एवं गीत:
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए-
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए-
आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी-
शर्ते लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए-
हर सडक पर हर गली में हर नगर हर गाँव में-
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए-
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं-
मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए...
बाबु नारायण जी का गीत-
सुंदर सुभूमि भैया भारत के देशवा से-
मोरा प्राण बसे ही म कहे रे बटोहीया-
एक द्वार घेरे रामा हिमा कोतो वलवा से-
तीन द्वार सिन्धु गह रवे रे बटोहीया...