रे सुगना अब मत बाग अगोर रे सुगना, सूरज उगी न रतिया जागी न उतरी अब भोर...निर्गुण गीत -
सुनील कुमार मालीघाट, मुजफ्फरपुर (बिहार) से डॉ कुमार विरल की एक रचना सुना रहे हैं :
रे सुगना अब मत बाग अगोर रे सुगना – सूरज उगी न रतिया जागी न उतरी अब भोर –
खटते खटते खून जरईले जीते जी मर गईले – खटते खटते खून जरईले हासिल न भईले तोर – छूटल माटी गांव भूलाईल शहर नगर छिछिआईल – अजगर मुँह फईलवले बाटे सपना हो गईले थोड़ – रे सुगना अब मत बाग अगोर...