स्वामी विवेकान्द उनको अकाल में म्रत्यु लोगो के बारे में सोच रो रोकर बताते जाते...किस्सा
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार स्वामी विवेकान्द जी से सम्बन्धित किस्सा सुना रहे है, बहुत समय पहले की बात है बंगाल में जबदस्त अकाल पड़ा उस समय इंसान से लेकर जानवर सब परेशान हुए यह देखकर विवेकानन्द अपने अनुयायियो समेत सेवा में लग गए, लोगो की तकलीफ़ देख विवेकानन्द अन्दर ही अन्दर बहुत दुखी हो जाते, एक दिन ब्राह्मणों का एक दल मिलने आया वह दल अध्यातम में ख़ुद को बहुत समझता था, विवेकानन्द उनको अकाल में म्रत्यु लोगो के बारे में सोच रो रोकर बताते जाते और सिसक सिसक कर रोते जाते आँखों के आंसू गर्दन तक आ रहे थे, यह देख दल में शामिल सभी ब्राह्मण चुपके चुपके हसने लगे विवेकानन्द ने उनसे पूछा क्यों हस रहे है तो दल में से एक सदस्य उठकर बोला एक सन्त को कष्ट में रोना नही चाहिए, तभी स्वामी जी उठे और एक पौधे की बड़े वहा से एक हरी छड़ी लाकर दल के सभी लोगो को पीठ पर छड़ी बरसाने लगे तभी सब चीखने चिल्लाने लगे तभी विवेकानन्द ने कहा यह मक्कारी नही चलेगी तुम सब तो दर्द पर विजय पा चुके हो फिर चीख क्यों आंसू क्यों, जो इन्सान की तकलीफ़ पर नही रोए वह सन्त हो ही नही सकता |