दर्द का भी अजीब किस्सा है...रचना
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार देवेन्द्र आर्य की एक रचना सुना रहे हैं :
दर्द का भी अजीब किस्सा है-
हाल पूछो तभी उभरता है-
वह बेचारी तो बोलती भी नहीं-
पेड़ झुट्ठे हवा से लड़ता है-
कब हमें कर दे वक़्त के बाहर-
वक़्त का यूं भी क्या भरोसा है-
तैरती थी नदी मछलियों सी-
मैंने तो वह भी दौर देखा है-
ले के रख लो, चढ़ेंगे दाम आगे-
उस तरफ़ धूप कितने बिस्वा है-
जाने क्या गड़ता रहता आँखों में-
मुझको लगता है ख्वाब गड़ता है-
यूं तो शामिल हैं हम भी इसमें मगर-
भीड़ तो भीड़ का ही हिस्सा है-
फिर ये कर्मण्ये वाधिकारस्ते-
आदमी तो ख़ुदा का मोहरा है-
कौन पूरा है पूरी दुनिया में-
रात आधी है, दिन भी आधा है-
अपने और ग़ैर से निभाने में-
कुछ न कुछ फ़र्क पड़ ही जाता है-
सब से पहला सवाल पैसे का-
सबसे अन्तिम सवाल पैसा है-
दर्द का भी अजीब किस्सा है...