देखा हुआ सा कुछ है, तो सोचा हुआ सा कुछ...निदा फाज़ली की ग़ज़ल-
मालीघाट, जिला-मुजफ्फरपुर, बिहार से सुनील कुमार एक निदा फाज़ली की ग़ज़ल सुना रहे हैं :
देखा हुआ सा कुछ है, तो सोचा हुआ सा कुछ-
हर वक़्त मेरे साथ है, उलझा हुआ सा कुछ-
होता है यूँ भी रास्ता खुलता नहीं कहीं-
जंगल-सा फैल जाता है, खोया हुआ सा कुछ-
साहिल की गिली रेत पर बच्चों के खेल-सा-
हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ-
फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया कुछ इस तरह-
हर शै से मुस्कुराता है रोता हुआ सा कुछ-
धुँधली सी एक याद किसी क़ब्र का दिया-
और मेरे आसपास चमकता हुआ सा कुछ...