कितना निराला रिश्ता है...रचना
मालीघाट,जिला-मुजाफ्फरपुर (बिहार) से सुनील कुमार,सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक रचना सूना रहे हैं :
कितना निराला रिश्ता है-
पेड़ का चिड़िया से-
वह नहीं जनता-
वह उस पर उतरेगी-
या यूंही मंडरा कर चली जाएगी-
उतरेगी तो कितनी देर के लिए-
किस टहनी पर – वह नहीं जनता-
वह यहाँ घोंसला बनाएगी-
या पत्तों में मुह-
छिपा कर सो जाएगी – वह नहीं जनता-
उसके पंखों के रंग-
उसकी पत्तियों के रंग-
जैसे ही हें या नहीं-
वह नहीं जनता-
वह क्यों आती है-
क्यों चली जाती है-
क्यों चहचाती है – क्यों खामोश होती है-
वह नहीं जनता-
वह क्यों सहमती है-
क्यों डरती है-
क्यों उसे निर्भय गान से भरती है-
क्यों उसके फल कुतरती है-
क्यों उसकी आत्मा में उतरती है-
वह नहीं जनता-
कल उसके टूट जाने पर-
वह कहाँ होगी-
वह नहीं जनता-
कितना निराला रिश्ता है-
पेड़ का चिड़िया से-
जिसे वह अपना मानता है-
और जिसके सहारे-
हर बार अपने को-
नए सिरे से पहचानता है...