हर बिखरे अनुभव के रेशे को समेट कर लिखता है...भवानी प्रसाद मिश्र की कविता-
सुनील कुमार भवानी प्रसाद मिश्र की कविता सुना रहे हैं:
बुनी हुई रस्सी को घुमायें उल्टा-
तो वह खुल जाती हैं-
और अलग अलग देखे जा सकते है-
उसके सारे रेशे-
मगर कविता को कोई/ खोले ऐसा उल्टा-
तो साफ नहीं होंगे हमारे अनुभव-
इस तरह/क्योंकि अनुभव तो हमे-
जितने इसके माध्यम से हुए हैं-
उससे ज्यादा हुए हैं दूसरे माध्यमों से-
व्यक्त वे जरूर हुए हैं यहाँ-
कविता को/ बिखरा कर देखने से-
सिवा रेशों के क्या दिखता है-
लिखने वाला तो-
हर बिखरे अनुभव के रेशे को-
समेट कर लिखता हैं...