ढूढ़ रहे है सारे बच्चें, कहा खो गया प्यारा बचपन...बाल शिक्षा पर कविता
ग्राम छत्रपुर, विकासखंड घुघरी, जिला मंडला (मध्यप्रदेश) से मोहन मरावी उन ग्रामीण बच्चों जो बचपन से ही स्कूल नही जाते है उन पर एक कविता सुना रहे हैं:
ढूढ़ रहे है सारे बच्चें, कहा खो गया प्यारा बचपन-
काम-कमाई के चक्कर में, दफन हो गया प्यारा बचपन-
ट्रेन में ढूढ़ता कबाढ़ है, होटल में है बर्तन धोता-
जूतों पर पलिस करता, सडको पर बोझ ढ़ोता-
जंगल-जंगल ढोर चराता, फिरता मारा-मारा बचपन-
ढूढ़ रहे है सारे बच्चें, कहा खो गया प्यारा बचपन-
खेती-खलियाने में, खट खटता जाता है सारा बचपन-
पुरखों से मृध लिया उसी को काट रहा बेचारा बचपन-
ढूढ़ रहे है सारे बच्चें, कहा खो गया प्यारा बचपन-
काम-कमाई के चक्कर में, दफन हो गया प्यारा बचपन-
काम सीखना, ढोर चराना, भात बनाना, बुरा नही है-
ख़ुशी-ख़ुशी सरल कामो, हाथ बाटना बुरा नही है-
लेकिन शिक्षा से दूर हटाना बहुत बुरा है-
श्रम लेकर सरल बनाना, उन्हें फ़साना बुरा है-
पढ़ते-पढ़ते काम सीखते, तो हो जाता न्यारा बचपन-
ढूढ़ रहे है सारे बच्चें, कहा खो गया प्यारा बचपन-
काम-कमाई के चक्कर में, दफन हो गया प्यारा बचपन-
आवाज इसमें अभी अंजाम मत चाहो-
इन्हें पढ़ाओ आज इनसे काम मत चाहो-
फलने दो फूलने दो खुशियों के बेल को-
मासूम है अभी इनका अभी से दाम मत चाहो...