मैं बेरोजगार हूँ रोजगार चाहता हूँ...पलायन कविता
वी.के.वर्मा जिला-गिरिडीह (झारखण्ड) से पलायन पर एक कविता सुना रहें हैं:
मैं बेरोजगार हूँ रोजगार चाहता हूँ-
पर झारखण्ड में संभव नहीं है-
मैं भूखा खाने को दो-चार निवाला चाहता हूँ-
पर झारखण्ड में ये संभव नहीं है-
मेरा परिवार भी सोता हैं भूखा-
नसीब नहीं होता भोजन रुखा-सूखा-
इसीलिए मैं अपने झारखंडी होने का अधिकार चाहता हूँ-
पर झारखण्ड में ये संभव नहीं है-
ओरों की तरह मैं अपने परिवार के-साथ रहकर
अपने बच्चों का प्यार चाहता हूँ-
पर झारखण्ड में संभव नहीं है-
बस यहाँ हमारे जैसे लोगो के लिए-
एक ही विकल्प हैं पलायन-पलायन-पलायन-
इसलिए मैं इसका कुछ उपचार चाहता हूँ...