भाषा जो प्रकृति की समझे मैं हूं वो आदिवासी...आदिवासी गीत
सुनील कुमार,जिला मुजफ्फरपुर (बिहार) से आदिवासी पर एक गीत सुना रहे हैं:
रीयु रीयु री री ला, री री री ला-
भाषा जो प्रकृति की समझे मैं हूं वो आदिवासी-
कोई कहे वनवासी कोई मूलनिवासी-
सीना तानकर खड़ा रहा हूं, न सहा मैंने अत्याचार-
निंस्वार्थ तीरो के दम पर, दिलाया हूं अधिकार-
ना की चमचागिरी अंग्रेजो की, ना गोलियो की बरसात-
सब कर्म को करनेवाला,सब गुणों को रखनेवाला-
प्रकृति पुत्र पुरखा बननेवाला, स्वतंत्रता का अधिकार-
न कि कर्मकांड की वकालत, लोकतंत्र और स्वराज...