Mining mafia harass tribal who helped catch illegal explosives

Kailash Meena, a tribal had helped recover two truck loads of illegal explosives, in the Neemka Thana area in Rajasthan. The trucks are parked in the Patal police station. Meena told Himanshu Kumar on phone that he is being chased by goons of the mining Mafia in Rajasthan and he needs help. For more please contact Himanshu ji at 9013893955

Posted on: Mar 23, 2012. Tags: HIMANSHU KUMAR MINING

मैं उस सभ्यता का वंशज हूं जिसके मुहाने औरत की जली हुई लाश है

मैं उस सभ्यता का वंशज हूं
जिसके मुहाने पर एक औरत की जली हुई लाश है
जो मोहनजोदडो के तालाब की आखरी सीढ़ी पर पडी है
और जो सभ्यता
एक औरत की योनी मे पत्थर भरने
को राष्ट्रीय गौरव मानती है

मेरी सभ्यता की सारी पवित्र ऋचाओं
का जन्म अनार्य असुरों
के वध के उल्लास के क्षणों मे हुआ
मेरा धर्म युद्ध का धर्म है
मेरा धर्मघोष ही जय है
जय हो जय हो जय हो
मेरा धर्मघोष अगणित शत्रुओं के
शवों के बीच से उठा है
युद्ध मे जय
शत्रु की मृत्यु से उपजी जय मेरा धर्म वाक्य है

मेरा ईश्वर
स्वर्ण मंडित
शस्त्रधारी
विजेता
वधकर्ता

मेरी सभ्यता मे
शूद्र – श्रमिक
धनिक – श्रेष्ठ
वसुंधरा वीर भोग्या है
और वीरता
शत्रु के वध से निश्चित होती है

हम
स्वर्ण प्रिय
भोग प्रिय
वध प्रिय

मैं वहाँ से बोल रहा हूं जहां
एक आदिवासी माँ की हत्या करने के बाद
उसके डेढ़ साल के बच्चे का हाथ काटने के बाद
हमारी सेनाए विजय उत्सव मनाती हैं
और हमारे शासक
उन सेनाओं को पुरस्कृत करते हैं
और हम
अपनी सेनाओ पर गर्व करते हैं

हम लुटेरों पर गर्व करते हैं
हम हत्यारों पर गर्व करते हैं
हम शील हर्ताओं पर गर्व करते हैं
हम इन पर गर्व करने वाली अपनी
संस्कृति पर गर्व करते हैं

जय हो जय हो जय हो
हमारी जय हो – हिमाँशु कुमार

Posted on: Mar 09, 2012. Tags: Himanshu Kumar

आतंकवादी...एक कविता

वे रात के अँधेरे में आये , मुझे ले गये
और बंद किया किसी कमरे के अँधेरे में
और कई दिनों तक पूछते रहे सवाल
जिक्र किया किसी बिस्फोट का
और मेरी हड्डियों में तलाशा अपनी बेंत से कोई सुराग
उन्हें लगा कि मेरे सीने में पल रही है कोई साजिश
तो नंगा किया मुझे
मेरा शरीर जीता जागता सबूत बना सत्ता के कारनामों का
पर अदालतें उनकी थी, गुनाहगार मैं ही ठहरा
जिरह हुई, पर मैं नहीं था चर्चा में
नेशनल इंटिग्रिटी को बार-बार उछाला गया हवा में
और मैं किसी बकरे की तरह कठघरे में खड़ा चुपचाप,
सोचता रहा राशन के बकाया के बारे में
बनियें का खुर्राट चेहरा और मेरी बीबी का झांकना बार-बार खाली कनस्तर को
बच्चे स्कूल छोड़ देंगे क्या? वह घर कैसा होगा जहाँ मेरी हाजिरी नहीं है,

खिड़की का जाला साफ हो गया हो शायद,
पर टूटा हुआ आइना अब भी वहीं होगा जिसे मैं बदलने वाला था
बारिश भी आनेवाली है, क्या घर टपकना कम हो जायेगा ?
अम्मी को नींद नहीं आयेगी, खटिये पर खांसती रहेगी रात भर,
दवाई लेने अस्पताल कौन जायेगा ?
सजा-ए-मौत की मांग हुई, मेरे लिये, एक आतंकवादी के लिये,
देश भक्ति का बाजार गर्म हुआ, अच्छा व्यापार हुआ
न्यूज़ और डिस्काउंट के बीच न्यूज चैनल ने बेचा सरकारी झूठ
होममिनिस्ट्री ने सुरक्षा इंतजाम के पुखते वादे किये
आर्म्स के फ्रेश आर्डर दिए गये विदेशी एजेंसियों को
स्विस बैंक के गुप्त खाते में हेर फेर हुआ
मेरे खिलाफ एक ग्लोबल वार छिड़ गया
दुनियां के सारे मुनाफाखोर एक हुए
डायलेश में एक शानदार पार्टी हुई
बिल को सील किया गया कि, मेरी लाश से निकले तेल को कौन कितना पीयेगा ?
अपनी खुमारी में हुक्मरानों ने फरमान जारी किया ,
कि मेरी मौत उपलब्धी है मानवता के लिये,
विश्व प्रेम व शांति के लिये जरूरी है ,
हाँ, निहायत ही जरूरी है ,
पूंजी के वृद्धि के लिये सड़कपर मर जाना
जरूरी है किसानो का नरसंहार भी, कि मौनसेंटो धन कम सकें
मजदूरों का भूखों मरना भी जरूरी है, कि देश का डी.जी.पी. बढ़ता रहे
और जरूरी है हिंदुस्तान के मुसलमान का हाशिये पर होना भी
कि बंटवारे की राजनीति बनी रहे,
ये बंटवारा नहीं है मेरे दोस्त, ये शोषण हमारी नियति है
तिल-तिल मरना हमारा कि वो और भी अय्याश हो जाएँ ! -अजय साव मुंबई

Posted on: Jan 19, 2012. Tags: Himanshu Kumar

फिर जला दिये गये आदिवासियों के गाँव...एक कविता

फिर जला दिये गये आदिवासियों के गाँव
इस उम्मीद में कि जमीन , नदी और पहाड़ को न बेचने की संस्कृति मर जायेगी ,
फिर वो राख उड़ी और जम गयी विजेताओं की संततियों के मस्तिष्क में ,
और उसने उन सब के मस्तिष्क को कुंद बना दिया ,
फिर श्रेष्ठ जातियों ने पढ़े कुछ प्राचीन श्लोक और सिद्ध किया कि वसुधा एक कुटुंब है ,
फिर पूरी वसुधा के सारे विजेता एक कुटुंब हो गये ,
फिर विजेताओं ने लिखे इतिहास ,
जिसमे कहीं नहीं थे
आदिवासी युवतियों की प्रेम कहानियाँ ,
युवकों के फौलादी बाजुओं की मछलियों की दास्तानें,
न नदियाँ थीं , न पहाड़ , न वसंत ,न मेला ,न चूड़ी ,

विजेताओं ने
बनाये भव्य स्मारक
इस युद्ध में शहीद हुए सिपाहियों के
जिसमे सिपाहियों के
नाक बहाते गरीब बच्चों का जाना मना था ,
फिर बुद्धिमान लोगों ने अनुमान लगाये ,
सांस्कृतिक विरासत की रक्षा को क्या क्या खतरे बाकी हैं अभी ,

कुछ सिरफिरों ने कोशिश की सर उठाने की ,
पर कुचल दिये गये,
इतने महान देश के लोकतंत्र से टकराना मजाक है क्या ?
लोकतंत्र की रक्षा में सारी श्रेष्ठ जातियां एक हो गयीं ,
बागी बुरी तरह मारे गये,
कुछ भी तो नहीं था उनकी तरफ ,
न धर्म
न संस्कृति ,
न राजनीति ,
कुछ जंगलियों के समर्थन से
क्रांति करने चले थे ,

कुछ निष्पक्ष लोगों ने ,
विश्लेषण प्रस्तुत किये
राष्ट्र के सम्मुख जिसमे
ऐसा आभास दिया गया था
कि ये क्रांति को भी अच्छी तरह समझते हैं
पर असल में इन्होने ही तो बताये थे
बागियों के खात्मे के गुर
विजेताओं को

हिमांशु कुमार

Posted on: Jan 17, 2012. Tags: Himanshu Kumar

कलम तभी तक कलम है जब तक सच लिखे...श्याम बहादुर नम्र की कविता

कलम कलम है
लेकिन तभी तक कलम है
जब तक सच लिखे
उसके लिखे में झूठ न दिखे
कलम बिकाऊ नहीं होती
बिकी हुई कलम बिलकुल टिकाऊ नहीं होती
क्योंकि बिकते ही वो वस्तु हों जाती है
उसकी सारी अस्मिता खो जाती है
कलम फूल है
सिद्धांत की टहनियों पर काँटों में भी हंसती मुस्कुराती है
लेकिन तोड़ लिए जाने पर
भगवान के माथे पर भी मुरझा जाती है
कलम तभी तक कलम है
जब तक सिद्धांत की साख पर रहे
कलम तभी तक कलम है
जब तक वो सच लिखे
सच कहे
कलम अंकुर की तरह कोमल है
नितांत कोमल
लेकिन पत्थर का भी सीना चीरकर उग आती है
झूठ के घने अँधेरे में
सच के दिए सी टिमटिमाती है
कलम रोशनी है दिए की
बिकते ही बुझ जाती है
कलम कभी किसी को नहीं छलती
कलम कभी लीक पर नहीं चलती
ईर्ष्या से नहीं जलती
इसलिए हारकर भी हाथ नहीं मलती
कलम न डरती है
न डराती है
किसी पर धौंस नहीं जमाती है
वो ब्लैकमेल नहीं करती
सच की खातिर टूट जाए
फिर भी नहीं मरती
लेकिन वो बिकाऊ हाथों में अपार कष्ट सहती है
मुक्ति के लिए छटपटाती है
उन हाथों से अपने हर लिखे पर शर्माती है
क्योंकि वो वस्तु नहीं बनाना चाहती
किसी भी दाम पर नहीं बिकना
क्योंकि कलम कलम है
लेकिन तभी तक कलम है
जब तक सच लिखे
उसके लिखे में झूठ न दिखे

श्याम बहादुर नम्र

Posted on: Jan 10, 2012. Tags: Himanshu Kumar

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