झारखंडे के धिया-पुता, ना करिहा अरमान रे...खोरठा भाषा में पलायन गीत
वासुदेव तुरी, बोकारो, झारखण्ड से रोजगार के अभाव में हो रहे पलायन पर खोरठा भाषा में एक गीत प्रस्तुत कर रहे हैं:
झारखंडे के धिया-पुता, ना करिहा अरमान रे-
मांड-भात खाहें दादा हवो हो विहान रे-
हमर झारखंडे काठ-कोयला, तावो हैं बेहाल रे-
मांड-भात खाहें दादा हवो हो विहान रे-
हमर झाiरखंडे हीरा-सोना औरो है मोती-
दूरी देशे जाहे दादा करे रोजी रोटी-
हिंयां के धिया-पूता कांधे झारे झार रे-
दुरी देशे जाहे दादा-
हमर देशे बड़ी जले, महँगी-महंगाई-
दुरी देशे जाके दादा ना होवो कमाई-
हिंयां के धिया -पूता, काँधे झारे-झार रे-
मांड-भात खाहें दादा हवो हो विहान रे