कितने रंगों में बिखरे हैं तेरे यादों के गुल! शाहिद अख्तर की नज़्म
कितने रंगों में
बिखरे हैं तेरे यादों के गुल!
कितने अश्कों में
सजाएं हैं तसव्वर तेरे!
दर्द के कितने लहजों में
लिखे हैं मैंने चाहत के फसाने
दर्द से अजनबी यां कौन है?
दर्द की शननसाई ही तो है
इस ज़िंदगी का मेराज!
ना जाने कितने दर्द को किया है
मैंने अपने अरमानों को उन्वान
मेरे मह्बूब तू ही बता
किस दर्द में करूं
मैं तेरी शिनाख्त?
शाहिद अख्तर
गुल = फूल;
अश्कों = आंसुओं;
तसव्वर = कल्पना;
फसाने = कहानियां;
यां = यहां;
शनासाई = पहचान;
मेराज = बुलंदी;
उन्वान = शीर्षक;
शिनाख्त = पहचान