काली उखेतर खेड़े रे, मोआसुनूँ भीलडू...भीली कृषि गीत
देवास मध्यप्रदेश के दमासीन के काकड़ मोहल्ले से सिकदार लहरे एक गीत सुना रहे हैं। गीत बारेला समाज के लोकपरम्परा से सम्बंधित है। आदिवासी लोग जब जमीन तैयार करके ज्वार-बाजरे की खेती करते हैं या नए धान का पूजन करते हैं तब बहन -बेटियां मिलकर ये गीत गाती हैं :
काली उखेतर खेड़े रे, मोआसुनूँ भीलडू
खेड़ी-खेड़ी ने रसबायु रे, मोआसुनूँ भीलडू
वाई झुआर उगबाजे रे, मोआसुनूँ भीलडू
बाजेरे कूड़पण आयो रे, मोआसुनूँ भीलडू
बाजेरे नींदडू आयो रे, मोआसुनूँ भीलडू