अंतर्शक्ति...प्रेरक कविता
वो विहग! डाल पर बैठे, तुम क्या सोच रहे हो
कैसे उडूं, नहीं इतना बल, यही सोचकर कांप रहे हो
सभी तुम्हारे संगी -साथी, नभ में घूम रहे हैं
किन्तु तुम्हारे पैर अभी , धरती से जुड़े हुए हैं
उड़कर नहीं चलोगे तो, बैठे रह जाओगे
थोड़ी या अतिदूर, कहीं भी पहुँच नहीं पाओगे
गगन दूर है हमने माना, मगर तुमको वहीँ पहुँचना
पंखों में गति आ जाएगी, मंजिल छोटी हो जाएगी
तुममें ताकत बहुत बहुत भरी है, भीतर-भीतर दबी पड़ी है
उस ताकत को पहचानों, अपने हिम्मत को जानो ...