बरसे सावन धनधनवा रे...वर्षा गीत
मुजफ्फरपुर बिहार से साथी सुनील एक वर्षा गीत गा रहे हैं, जो झूमर शैली पर है.बारिश की फुहारों के बीच किसान अपने हांथों में हल-कुदाल लेकर निकल पड़ते हैं...
बरसे सावन धनधनवा रे, गुल लाइची-इलाइची
धनवा रोपेला किसनवा रे, गुल लाइची-इलाइची
बरसे सावन धनधनवा.....
चंडी कलेवा ले जनियाँ हो, गुल लाइची-इलाइची
सावन बनलबा बजनिया हो, गुल लाइची-इलाइची
लागे मसाहल वा कदवा हो, गुल लाइची-इलाइची
बलमा किसान मोरा रजवा हो, गुल लाइची-इलाइची
बीया सजोर डाला डटके हो, गुल लाइची-इलाइची
बांध रोपा घोंघा ना घुसके हो, गुल लाइची-इलाइची
धरती गढ़ावे आवरनवा हो,गुल लाइची-इलाइची
बरसे सावन धनधनवा रे,गुल लाइची-इलाइची
धनवा रोपेला किसनवा रे, गुल लाइची-इलाइची
धनवा रोपेला .........