भोपाल में तो हमने गैस की ही तीन अवस्थाएं देखीं...
जानते हैं हम
होती हैं तीन अवस्थाएं, पदार्थ की
ठोस, तरल और गैस
पर
भोपाल में तो हमने
गैस की ही तीन अवस्थाएं देखीं |
एक गैस, जो रिसी गैस की तरह
उड़ी और फैली भी गैस की ही तरह
सब कुछ तबाह भी किया उसने
किसी जहरीली गैस की ही तरह |
यही गैस, तरल बन के बही
और अब भी बह रही है हजारों आँखों से
कुछ में ऐनक चढ़ गए, कुछ नहीं सहेज सकीं रोशनी को
यही गैस, अभी भी कारखाने के नीचे
बह रही है, धडक रही है उस पानी के सीने में |
यही गैस अब जम गई है सीने में, पत्थर की तरह
29 बरस की सरकारी बेरुखी देखकर
लहू जम गया है शिराओं में
धमनियां कराह रही हैं, फेफड़े गल रहे हैं
हड्डियाँ धनुष की मानिंद हो चली हैं
जिन पर राजनेता प्रत्यंचा चढ़ा रहे हैं बरसों से |
गैस की ये तीनों अवस्थाएं
कई पीढ़ियों में अपना जहर फैला चुकी हैं
और बढ़ रही हैं जमीन के नीचे
नेस्तनाबूद करने को कई और पीढ़ी |