हल चला के खेतो को मैंने ही सजाया रे...
हल चला के खेतो को मैंने ही सजाया रे
गेहू चावल मक्के को मैंने ही उगाया रे
चूल्हा भी बनाया मैंने धान भी पकाया रे
रहूँ क्यों भूखे पेट रे की मेरे लिये काम नहीं
सोऊ क्यों भूखे पेट रे मेरे लिये काम नहीं
मट्टी की खुदाई की बत्ती को जलाया रे
इटो को पकाया मेने बंगला बनाया रे
संसद का हर एक खंभा मैंने ही उठाया रे
सोऊं क्यों फुटपाथ पे की मेरे लिये काम नहीं
रहू क्यों भूखे पेट रे की मेरे लिये काम नहीं
ढाबे को चलाया मैंने मिलो को चलाया रे
ताना बाना जोड़ के कपड़ा बनाया रे
सपनो के रंग से उसको सजाया रे
मुझे कफन नहीं रे की मेरे लिये काम नहीं
रहू क्यों भूखे पेट रे की मेरे लिये काम नहीं
शाहजहा के ताज को मैंने ही बनाया रे
मंदिर ओर मस्जिदों को मैंने ही सजाया रे
बासुरी की ताल और मांदर को बजाया रे
मेरा संगीत कंहा रे कि मेरे लिये काम नहीं
रहू क्यों भूखे पेट रे की मेरे लिये काम नहीं
सपने सजायेंगे जिंदगी बनायेंगे
उंगलियों को मोड़ के हाथों को उठाएंगे
ओर जिंदाबाद गायेंगे
रहू क्यों भूखे पेट रे की मेरे लिये काम नहीं