ऐसी ख्याति है बजर किसान की, खबर नहीं अपने जान की...एक गीत
ऐसी ख्याति है बजर किसान की,
खबर नहीं अपने जान की !
ऐसे निकले सर से पसीना ,
जैसे लागे जेठ महिना
एड़ी तक चुए पसीना !!
घास कूड़े में सुध नहीं इन्सान की ,
खबर नहीं अपने जान की !!
सूखी रोटी में जिंदगी किसान की ,
खबर नहीं अपने जान की !
ऐसी ख्याति है बजर किसान की,
खबर नहीं अपने जान की !
ए सब माया का है झटका ,
इसको सदगुरु ने धर पटका !
ए तो बनाई भागवत पाल की !
इसे खबर नहीं अपने जान की
ऐसी ख्याति है बजर किसान की,
खबर नहीं अपने जान की !...2