क्यों समझते हो खुद को कमज़ोर मज़दूरों...
क्यों समझते हो खुद को कमज़ोर मज़दूरों
अपनी ताकत पर तुम करो गौर मज़दूरों
सृष्टि में तुम सूर्य की पहली किरण हो
रोशनी का तुम सुनहरा भोर मज़दूरों
काम रूपी घंटी का तुम गूँज हो
विकास रूपी पूजा का तुम एक ठौर मज़दूरों
धर्म दर्शन ज्ञान की उड़ती पतंगे
इन पतंगों की तुम्ही हो डोर मज़दूरों
तुम रहो चौकस तो बिलकुल ना बनेगी
शोषक रूपी भेड़ियों का कौर मज़दूरों
राह में ठोकर लगे हिम्मत न हारो
फिर करो कोशिश कोई पुरज़ोर मज़दूरों