देखो राजसत्ता और सत्ता के ठेकेदारों...एक कविता
देखो राजसत्ता और सत्ता के ठेकेदारों
शहर जाग गया है इतने जुल्मों के बाद भी
लोग हमारे आवाजों की
ग़ज़लों गीतों और कविताओं मे ज़िंदा रखते अपने दर्दों को
हमारी मुट्ठी ज़्यादा ताकतवर है
साँसे हमारी ज्वालामुखी सी
गर्म हैं और भी ज़्यादा
हम हर शर्त पर ज़िंदा रहेंगे
और तुम्हारी मौत निश्चित है
अरुण प्रधान