मूर्ख सेठ और उसके सिक्कों में सीलन की कहानी...
बहुत पहले की बात है, एक गाँव में एक सेठ रहता था वह बहुत कंजूस था साथ ही मूर्ख भी था उसे अपने जमा किए हुए सिक्को की गिनती तक नहीं की थी, अपने अनगिनत सिक्के के ढेर को देखकर वह बहुत खुश रहता था| बरसात का मौसम जब आया तो कई दिनों तक वर्षा होती रही, सेठ को बस इतनी सी बात पता थी कि बरसात के कारण सिक्को में सीलन लग जाती है. सेठ को चिंता सताने लगी उसके पास कई बोरे सिक्के भरे थे उसने सोचा मेरे सिक्को को सीलन ना लग जाए तो जैसे बरसात रुकी सेठ ने अपने मुनीम की चौकसी में छत पर डलवा दिए दूसरे दिन उसका वजन लिया पहले जितना था उतना ही वजन निकला सेठ ने सोचा अभी सीलन निकली नही है, मुनीम को निर्देश देकर फिर धूप में फैला दिए, अब तो रोज़ का काम ना वजन कम होता था ना सेठ धूप दिखाना छोड़ता था, मुनीम परेशान हो गया एक दिन तंग आकर मुनीम ने अपने अधीन कर्मचारी को बोला क्यों न एक-एक पोटली सिक्के अपने घर ले जाए कर्मचारी मान गया और अपने घर दोनों ले गयें दूसरे दिन सिक्के फिर तुलवाए अब वजन कम था सेठ खुश होकर बोला अब सीलन निकल गई, बोला अब इन्हें बोरे में भरकर कोठरी में रख दो.