छत्तीसगढ़ की एक बेबस माँ की दास्तान
आज मुझको चाहिए इन्साफ चिल्लाती है माँ
क्या बिगाड़ा था मेरे बच्चों ने कह दो एक बार
स्कूल का थैला उठा के रोती बिखलाती है माँ
एक कुर्ता खूँ भरा और एक जली पुस्तक लिए
जो भी मिलता है उसे सबूत दिखलाती है माँ
याद आ जाते हैं क़ातिल अपने बच्चों के उसे
हर पुलिसवाले की वर्दी देख डर जाती है माँ
बिखरी जुल्फें बहते आंसू चीखती दफ्तर में है
बेशरम सरकार को पागल नज़र आती है माँ
गुरु जी थे मंत्री भी और वन्दे मातरम था लिखा
भीड़ में भक्तों की ठोकर खा के गिर जाती है माँ
बेगुनाह बच्चों को आतंकी न कहिये ऐ हुज़ूर
मर न जाए ग़म से ये बेबस नज़र आती है माँ
आज मुझको चाहिए इन्साफ चिल्लाती है माँ
आज मुझको चाहिए इन्साफ चिल्लाती है माँ
अमीर रिज़वी