एक अहसास रोज होता है मुझे...प्रकृति कविता
जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़) से नर्मदा प्रसाद प्रकृति पर कविता सुना रहे हैं:
एक अहसास रोज होता है मुझे-
सुबह उठते ही घर की मुंडेर पर कुछ दाना-पानी रखने का-
होता है यह अहसास इसलिए भी कि-
भोर होते ही पक्षियों का कलरव मुझे सिखा जाता है-
अपने नन्हे बच्चों के साथ खिसियाते गुटर-गू करते-
मेरे ये मित्र आते ही हैं मुंडेर पर मेरी-
यह आशा लिए की यहाँ जरूर मिलेगा भरपेट दाना-पानी-
झरोखे से देखता हूँछुपकर-
उनका रोमेंटिक कर देने वाला कलरव-
लड़ते-झगड़ते फुर्र से यहाँ-वहा बैठते-
एक-दुसरे से छीना-झपटी करते आनंदित हो जाता हूँ-
जब देखता हूँ चिड़िया को अपनी नन्ही चोंच में रखते हुए दाना-
मानता कहाँ हैं चिड़ा भी रह-रहकर जताता है प्यार अपना-
यही दृश्य यही अहसास देता है सुकून-
भर देता हैं मन में उर्जा और आत्म-विश्वास-
और देता है प्रेरणा कि रे मन तू-
करता है क्या चिंता रखवाला हैन हम सबका वह ईश्वर-
उन बेजुबान पक्षियों की तरह तू कर्म तो कर-
निश्चित ही होगा फलित प्रभावित...