जेल से कविता: किस किस को कैद करोगे?
किस किस को कैद करोगे?
लाखों हैं मुक्ति के पंछी, कैद करोगे किसको
लेकर पिंजरा उड़ जाएंगे खबर न होगी तुझको
इस पिंजरे की सलाखों का लोहा हमने ही निकाला है
ये लोहा पिघलाने हमने अपना खून उबाला है
लोहा लोहे को पहचानेगा, फिर क्या होगा समझो
लेकर पिंजरा उड़ जाएंगे खबर न होगी तुझको
इस पिंजरे की दीवारों में हमने पसीना बहाया है
ईंट बनाने, सीमेंट बनाने मिट्टी को भी भिगोया है
मिट्टी कभी गद्दार न होगी, क्या बतलायें तुझको
लेकर पिंजरा उड़ जाएंगे खबर न होगी तुझको
इस पिंजरे के पुर्जे पुर्जे हमें बताते अपने किस्से
कितने मज़दूर दफन हुए हैं इस पिंजरे के नींव के नीचे
वो मज़दूर हैं साथ हमारे, कौन रोकेगा हमको
लेकर पिंजरा उड़ जाएंगे खबर न होगी तुझको
कैद में डालो, फांसी लगा दो, हंटर से चमड़ी भी निकालो
न्याय के रस्ते चल पड़े हैं, बाँध लगा लो, कांटे बिछा लो
कितना ज़ुल्म करेगा ज़ालिम, थक जाना है तुझको
लेकर पिंजरा उड़ जाएंगे खबर न होगी तुझको
अशोक डेंगले