आदिवासी लेखिका रोज़ केरकेट्टा का कहानी संग्रह पगहा जोरी-जोरी रे घाटो
रोज केरकेट्टा ने अपने हिंदी कथा संग्रह पगहा जोरी-जोरी रे घाटो ( कतार में लौटती हुई चिडिया)में आदिवासी जीवन को सघनता और संपूर्णता के साथ शामिल किया है। जो जिया है, उसे ही लिखा है। संग्रह में व्यापकता, विविधता और आधुनिकता है। प्रतिरोध का राजनीतिक स्वर इसमें सबसे बड़ी बात है। यह बातें जेएनयू के डा.वीर भारत तलवार ने कही। रविभूषण, सबलोग के संपादक किशन कालजयी, वाल्टर भेंगरा तरुण, माया प्रसाद, बीपी केशरी, रणेंद्र ने भी कृति पर चर्चा की।