हम तरुण है हिन्द के हम खेलते अंगार से...
हम तरुण है हिन्द के हम खेलते अंगार से
लड़ते नहीं हथियार से डरते नहीं तलवार से
हम जीतते है प्यार से हम तरुण है हिन्द के
आंधियो के बीच में आहें निमंत्रण दे रही
लाख पतरों के बवण्डर हम तो ना कहते नहीं
हम छ्वैया नावले जाते सदा मझधार से
चाँद सूरज और सितारे लाख ये ढलते रहे
ज़िंदगी के कारवा चलते रहे चलते रहे
कौन है मुझको बुलाता क्षितिज के उस पार से
मुक्ति का ले मन्त्र मेरे देश में गांधी बढा
सत्य का संग्राम सबने त्याग के बल पर लड़ा
क्रान्ति की ज्वाला कभी बुजती नहीं फुफकार से...