वो गणतंत्र था, आज भ्रष्ट्रतंत्र है !
एक और गणतंत्र
फिर से वही तिरंगा
कुछ भाषण और कुछ गीत
एक दिन का जोश और उमंग
अधूरे वादे और क्षूठे अहंकार का प्रदर्शन
सड़को पर पिछलग्गू भीड़ का जमावड़ा
सफ़ेद चादरों में लूटेरे मन की बर्बर शालीनता
बदबूदार ख़ददरों से नैतिकता की ढोंगी महक
मंडी में बिकता देश का धर्म और ईमान
पैरो तले कुचलता देश का सम्मान
1950 कल था, आज 2014 है
वो गणतंत्र था, आज भ्रष्ट्रतंत्र है
कल का लोकतंत्र एक सवेरा था
आज एक मरा हुआ लोकतंत्र है
आज एक मरा हुआ लोकतंत्र है