हे आदिवासी,तेरे पास खोने के लिए क्या है ?
हे आदिवासी, तेरे पास खोने के लिए क्या है ?
जल-जंगल-जमीन कभी तेरी थी,
आज वह पराई हो गई.
सोना, चांदी, धन, दौलत, मोटर, गाड़ी,
बंगला, हवेली तेरे पास है नहीं,
तेरो प्राकृतिक संपदा और मौलिक सत्ता,
बहुत पहले तेरे से खो गई.
फिर तू खोने (मरने) से डरता क्यों है ?
अब तू पाने के लिए उठ, लड़,
क्योंकि तेरे पास खोने को कुछ शेष नहीं है.
हे आदिवासी, जो तेरा था उसे प्राप्त कर,
क्योंकि धरती का सारा एश्वर्य,
तेरा ही इन्तजार कर रहा है,
क्योंकि भारत का तू ही मूलनिवासी है.
(के.आर.शाह)
सम्पादक, आदिवासी सत्ता