नदिया ना पीए कभी अपना जल, वृक्ष ना खाए कभी अपना फल...
नदियाँ ना पीए कभी अपना जल ,
वृक्ष ना खाए कभी अपना फल !
अपने तन को, मन को धन को,
देश को देदे दान रे ...२
वो सच्चा इंसान रे ...२
चाहे मिले सोना चांदी, चाहे मिले रोटी बासी
महल मिले जो सुखकारी, कुटिया मिले चाहे खाली !
प्रेम और संतोष भाव से करता जो स्वीकार रे
वो सच्चा इंसान रे ...२
चाहे करे निंदा कोई चाहे करे गुणगान रे ....
फूलों से सत्कार करे काँटों की चिंता ना करे ..
मान और अपमान दोनों जिसके लिए समान रे
वो सच्चा इन्सान रे ..२
नदियाँ ना पीए कभी अपना जल ,
वृक्ष ना खाए कभी अपना फल !
अपने तन को , मन को धन को,
देश को देदे दान रे ...२
वो सच्चा इंसान रे ...२